यादों के झरोखे से लेखनी कहानी मेरी डायरी-14-Nov-2022 भाग 31
शिरडी की यात्रा
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शिंगणापुर के बाद हम शिरडी फहुँचे।और वहाँ सांई बाबा के मन्दिर गये हमने सांई बाबा का इतिहास मालूम करने के लिए पूछा वहाँ के एक ब्यक्ति ने हमे जो बताया वह इस प्रकार था।
साईं बाबा को ईश्वर का अवतार माना जाता हैं, जिन्हें हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लोग समान भावना से पूजते हैं। साईं बाबा एक भारतीय धार्मिक गुरु थे, जिन्हें लोग वैश्विक स्तर पर पूजते हैं, उनके अनुयायी उन्हें फकीर, संत, योगी और सतगुरु मानते थे।
वे सभी धर्मों के लोगों से हमेशा प्रेमपूर्वक मिलजुल कर रहने का आह्वान करते रहे साथ ही हिन्दू-मुस्लिम दोनों धर्मो का पाठ पढाते रहे। वे मुस्लिम टोपी पहनते थे, और उन्होंने अपनी जिंदगी के ज्यादातर समय महाराष्ट्र में स्थित शिरडी की एक निर्जन मस्जिद में ही रहे।
साईं बाबा के जन्म, जन्मस्थान एवं वे किस धर्म से इसके बारे में इतिहासकारों और विद्दानों के कई अलग-अलग मत हैं। कुछ विद्दानों के मुताबिक उनका जन्म महाराष्ट्र के पाथरी गांव में 28 सितंबर, 1835 को हुआ था।
साईं सत्चरित्र किताब के अनुसार, साईं बाबा का जन्म 27 सितंबर, 1830 को महाराष्ट्र राज्य के पाथरी में हुआ था, और वे 23 से 25 साल की आयु में शिर्डी में आए थे।
साईं सत्चरित्र किताब के अनुसार, साईं जब 16 साल के थे तभी ब्रिटिश भारत के महाराष्ट्र राज्य के अहमदनगर जिले के शिर्डी गाँव में आए थे। वे एक सन्यासी बनकर जिन्दगी जी रहे थे, और हमेशा नीम के पेड़ के निचे ध्यान लगाकर बैठे रहते या आसन में बैठकर भगवान की भक्ति में लीन हो जाते थे।
इसके बाद इस युवा बाबा के चमत्कारों और उपदेशों के लोग मुरीद होते चले गए और फिर धीरे-धीरे उनकी ख्याति आस-पास के क्षेत्र में भी फैलने लगी और उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती चली गई।
लोगो को दया, प्यार,संतोष, मदद, आंतरिक शांति, समाज कल्याण, और ईश्वर की भक्ति का पाठ पढ़ाने वाले साईं बाबा का शुरुआती जीवन के बारे में आज भी रहस्य बना हुआ है।
इतिहास से प्राप्त कई दस्तावेजों के मुताबिक वे एक ब्राह्मण परिवार में जन्में थे, जिन्हें बाद में एक सूफी फकीर द्धारा गोद लिया गया था। हालांकि, आगे चलकर उन्होंने खुद को एक हिन्दू गुरु का शिष्य बताया था।
साईं बाबा हिन्दू थे या फिर मुसलमान इसे लेकर आज भी लोगों में भ्रम फैला हुआ है, उन्हें कुछ लोग शिव का अंश कहते हैं, तो कुछ लोग उन्हें दत्तात्रेय का अंश मानते हैं।
बताते है कि उन्होंने अपने जीवन का ज्यादातर समय शिरडी के एक मस्जिद में मुस्लिम फकीरों के साथ बिताया, वे हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही धर्म का आदर-सम्मान करते थे, उन्होंने कभी धर्म के आधार पर किसी के भी साथ भेदभाव नहीं किया।
बहुतसे लोग साईं बाबा के हिन्दू होने के पीछे यह तर्क भी देते हैं कि बाबा धुनी रमाते थे, और धुनी सिर्फ शैव या नाथपंथी धर्म के लोग भी जलाते हैं। इसके साथ ही वे हमेशा अपने माथे पर चंदन का टीका लगाते थे, एवं उनके कानों में छेद थे जो कि सिर्फ नाथपंथी करवाते हैं।
साईं बाबा के हिन्दू होने का एक यह भी प्रमाण है कि वे हर हफ्ते विट्ठल (श्री कृष्ण) के नाम पर भजन-कीर्तन का आयोजन करते थे। यहीं नहीं साईं भगवान के कुछ समर्थक उनके हाथ में भिक्षा मांगना, हुक्का पीना, कमंडल, कानों में छेद होने के आधार पर उन्हें नाथ संप्रदाय से भी जोड़ते थे
इस तरह आज तक यह मामला बीच में ही अटका हुआ है। लेकिन आस्था में आज भीक्षकोई कमी नहीं आई है।
हम वहाँ से मुम्ब ई बापिस आगये।
यादों के झरोखौ से २०२२
नरेश शर्मा
Radhika
03-Mar-2023 05:50 PM
Nice
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अदिति झा
03-Mar-2023 02:25 PM
Nice 👍🏼
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Mohammed urooj khan
14-Dec-2022 11:14 PM
👌👌👌👌
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